Dev Darshan-Satwada Dev: सतवाड़ा देव हार पर 22 मार्च को होंगे रवाना
- सतवाड़ा देव हार पर 22 मार्च को होंगे रवाना
-राज्य स्तरीय देवता मेले में होंगे शामिल
- देव पूरी करते है श्रद्धालुओं की मन्नते
-बेहड़ा मंदिर में ही मौजूद है स्वयं भू पिंडी
-देवता ने बहा दी थी दूध की गंगा
-काली गाय बाड़ पर दे जाती थी दूध
-आज भी मौजूद हैं राजा ने बतौर प्रयाश्चित भेंट किए नगाढ़े
HimachalToday.in
सुंदरनगर उपमंडल का मलोह पंचायत स्थित नालनी गांव में प्रसिद्ध श्री सत वाडा देव लाव लश्कर के साथ 22 मार्च के बाद फेरी पर रवाना हो रहे है। मूल स्थान देष श्री सतवाडा देव की संक्रति के अवसर पर विशेश पूजा अर्चना और झाढ किया गया और इसके उपरांत देव मंदिर की प्रबंधन कमेटी की बैठक का प्रधान भूप सिंह की अध्यक्षता में आयोजन किया गया।
राज्य स्तरीय देवता मेले में होंगे शामिल
जिसमें देवता के गुर तारा चंद, गोविंद और इंद्र तथा कमेटी के उपप्रधान चुडामंणि, सचिव रूप लाल, नंद लाल कटवाल, कृष्ण लाल, ऋतिक, राजेंद्र, सुरेश शर्मा, नंद लाल, प्रेम सिंह और राज कुमार शामिल हुए। कमेटी ने कहा कि देवता पहली अप्रैल को सुंदरनगर में राज्य स्तरीय देवता मेले में शामिल होंगे। देवता की शाही सवारी 22 मार्च को शुरू हो रही है। इस दौरान देव अपने भंडार से नालनी, फंगवास, भदरोहलु, बोबर, टाली, भवाणा, जडोल, हराबाग, बायला, तलसाई, वीणा, धारंडा, चौक, रडा और वापस होकर 1 अप्रैल को सुंदरनगर में राज्य स्तरीय देवता मेले में शामिल होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे। इन दिनों श्रद्धालुओं के देव को आमंत्रित करने के न्योते प्राप्त हो रहे है।
22 मार्च को हार पर लाव लश्कर के साथ रवाना हो रहे देव
26 फरवरी को देव मंदिर के कपाट खुलने से विधिवत पूजा अर्चना शुरू की गई, तथा श्रद्धालुओं की भीड़ प्रवेश होने लगी है। मंदिर कमेटी के सचिव रूपलाल ने कहा कि देव भव्य देव पूजा अर्चना के बाद देव 22 मार्च को हार पर लाव लश्कर के साथ रवाना हो रहे है।
बेहड़ा मंदिर में ही मौजूद है स्वयं भू पिंडी
श्री सतवाडा देव नालनी श्रद्धालुओं की मन्नते पूरी करते है। सुकेत रियासत के इतिहास में राजदरवार में श्री सत वाडा देव का अहम स्थान रहा है। सुकेत रियासत के दौर से ही श्रद्धालुओं की मन्नते पूरी करने की मान्यता रही है। चार दशक पुराने रथ को छोड नालनी गांव में प्रसिद्ध श्री सत वाडा देव नए रथ पर विराजे है और बीते कुछ सालों से नालनी स्थित नवनिर्मित बेहड़े में श्री सतवाड़ा देव के रथ कोठी में विराजमान रहते है। स्वयं भू पिंडी बेहड़ा मंदिर में ही मौजूद है।
देवता ने बहा दी थी दूध की गंगा
ग्रामीणों से देव से परीक्षा के प्रमाण देने की भी मांग कर दी। कहते है कि उसी समय एक शक्ति के रूप से देवता ने वाक्य दिया कि यहां साथ में बने सरोवर में जा कर देखो वहां दूध की गंगा बहती हुई मिलेगी। ग्रामीणों ने सरावोर में पहुंचने पर पाया कि सरोवर से दूध निकल कर बह रहा था। जो काफी अरसे तक ऐसे ही बहता रहा है। आज भी उस सरोवर में दूध निकलते यथावत प्राप्त होता है।
काली गाय बाड़ पर दे जाती थी दूध
मान्यता है कि पड़ोस के गांव से एक काली गाय घास चरने पर शाम को जाते समय भेखल के पेड़ (बाड़) उसके ऊपर खड़ी हो कर वहां दूध निकालती रहती थी। जब गाय के मालिक को दूध नहीं मिलता। तो वह परेशान रहने लगा और गाय का पीछा करने की मन बना लिया। रोचक पहलु है कि जब मालिक इस स्थिति से परीचित हुए और ग्रामीणों ने मिल कर मामला गहराई से समझने के प्रयास किए गए, तो दंग रह गए कि जहां गाय दूध दे रही है, वहीं भेखल के पेड़ के नीचे एक पिंडी विराजमान है। ग्रामीण पिंडी के दर्शन कर निहाल हुए। ग्रामीणों के के प्रार्थना पर कि अगर तो आप कोई महान शक्ति हो तो परिचय कराएं। इस घटना के उपरांत तुरंत एक शख्स के शरीर में शक्ति का प्रवेश हुआ और बाड़ा देव का परिचय दिया है।
आज भी मौजूद हैं राजा के बतौर प्रयाश्चित भेंट किए नगाढ़े
सरोवर के ऊपरी हिस्से में एक तुनी का पेड़ को जब राजा ने उसे काटने के लिए निर्देश किए। तो पेड़ पर कुल्हाड़ी रखते ही देव गुर (मडेलू) ने उस पेड़ को काटने का विरोध किया। उसके साथ ही स्वयं राजमहल में आकर राजा को घटना क्रम से परिचय कराते हुए जानकारी पेश की। राजा ने भी स्वयं अपनी गलती पर क्षमा मांगते हुए प्रयाश्चित करने के लिए स्वयं मंदिर में आकर राजा ने दो नगाढ़े भेंट किए है। जो आज भी मंदिर में बतौर प्राचीन धरोहर तथा इतिहास से परिचय करवाने के लिए मौजूद हैं।
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