Lahaul-Hydropower-Protest-Pdaipur-Rally-2025: "लाहुल स्पीति में जल परियोजना विरोध उदयपुर रैली 2025" 23 मई को

Lahaul-Hydropower-Protest-Pdaipur-Rally-2025: "लाहुल स्पीति में जल परियोजना विरोध उदयपुर रैली 2025"  23 मई को

Lahaul-Hydropower-Protest-Pdaipur-Rally-2025: "लाहुल स्पीति में जल परियोजना विरोध उदयपुर रैली 2025"  23 मई को 

  • उदयपुर रैली से प्रस्तावित मेगा जलविद्युत परियोजना का विरोध करेगी लाहुल घाटी
  • लाहुल घाटी पर खतरा: 3200 MW जलविद्युत परियोजनाएं
  • किन्नौर और उत्तराखंड जैसे तमाम उदाहरण हमारे समक्ष
  • उत्तराखंड त्रासदी के लिए बड़े जलविद्युत परियोजनाओं को ही जिम्मेवार
  • प्रकृति के साथ खिलवाड़ संपूर्ण लाहुल घाटी को एकजुट
  • महत्वपूर्व जन आंदोलन को कामयाब बनाने के लिए आएंगे लाहुल वासी 


हिमाचल प्रदेश, 19 मई 2025 (HimachalToday.in):

उदयपुर रैली से प्रस्तावित मेगा जलविद्युत परियोजना का विरोध करेगी लाहुल घाटी

हिमाचल प्रदेश के लाहुल घाटी में जलविद्युत परियोजनाओं के खिलाफ जन भावनाएं तेजी से उभर रही हैं। चिनाब बेसिन क्षेत्र में प्रस्तावित लगभग डेढ़ दर्जन मेगा हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को लेकर स्थानीय लोग अब खुलकर विरोध में उतर चुके हैं।

लाहुल स्पीति एकता मंच के अध्यक्ष सुदर्शन जसपा के नेतृत्व में 23 मई को उदयपुर में एक विशाल विरोध रैली आयोजित की जाएगी। इस रैली के माध्यम से लाहुल घाटी के लोग अपने पर्यावरणीय और सांस्कृतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए आवाज़ उठाएंगे।

सुदर्शन जसपा ने एक प्रेस बयान में कहा कि यह आंदोलन सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि लोगों को जागरूक करने और संगठित करने का प्रयास है। उन्होंने साफ कहा कि लाहुल घाटी को बांधों और बड़े जलविद्युत प्रोजेक्ट्स की भूमि नहीं बनने दिया जाएगा।

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Lahaul-Hydropower-Protest-Pdaipur-Rally-2025: "लाहुल स्पीति में जल परियोजना विरोध उदयपुर रैली 2025"
"लाहुल स्पीति में जल परियोजना विरोध रैली 2025"

लाहुल घाटी पर खतरा: 3200 MW जलविद्युत परियोजनाएं

लाहुल घाटी में 3200 मेगावाट की 17 जलविद्युत परियोजनाएं जनजातीय अधिकारों, पर्यावरण और जलवायु पर बड़ा संकट हैं। जानें स्थानीय विरोध की पूरी कहानी। लाहुल स्पीति एकता मंच के अध्यक्ष सुदर्शन जसपा ने कहा कि लाहुल घाटी के चिनाव बेसिन पर प्रस्तावित लगभग डेढ़ दर्जन बड़े जल विद्युत परियोजनाएं के विरुद्ध जन आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। इन प्रस्तावित परियोजनाओं में प्रथम नंबर पर जिस्पा 300 मेगावाट,स्टिंगरी,98 मेगावाट, छतडू 120 मेगावाट, मयाड़ 120 मेगावाट, तांदी 104 मेगावाट, राशेल 130 मेगावाट, सेली 400 मेगावाट, शगलिंग 44 मेगावाट, तेलिंग 94 मेगावाट, बरदंग 126 मेगावाट, तीग़रेट 81 मेगावाट, गोंधला 144 मेगावाट, कोकसर 90 मेगावाट, रहोली डूगली 420 मेगावाट, पूर्थी 300 मेगावाट, साच खास 260 मेगावाट, और डुगर 380 मेगावाट प्रमुख है, जिन जलविद्युत परियोजनाओं से लाहुल घाटी का कोई भी क्षेत्र  अछूता नहीं रहेगा। 

लाहुल घाटी की भौगोलिक परिस्थिति जलवायु और जनजातीय अधिकारों के लिए खतरा है प्रोजेक्ट लाहुल स्पीति एकता मंच के अध्यक्ष सुदर्शन जसपा ने हाल ही में हिमाचल सरकार द्वारा तेलंगाना सरकार के साथ मयाड़ 120 मेगावाट तथा सेली 400 मेगावाट परियोजनाओं के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर इन परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाने की कवायत का पुरजोर विरोध करते हुए बताया कि यह निर्णय पूरे लाहुल घाटी की अति संवेदनशील भौगोलिक परिस्थिति जलवायु तथा जनजातीय अधिकारों को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए लिया गया है-

किन्नौर और उत्तराखंड जैसे तमाम उदाहरण हमारे समक्ष

इन परियोजनाओं के निर्माण से न केवल सम्पूर्ण लाहुल घाटी की बेहद उपजाऊ जमीनए जैवविधितता और लुप्तराय प्रजातियां समाप्त हो जाएगी। बल्कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों में जनजीवन यापन कर रहे संपूर्ण लाहुल वासियों को भी जबरन विस्थापित होना पड़ सकता हैं। उन्होंने कहा कि किन्नौर और उत्तराखंड जैसे तमाम उदाहरण हमारे समक्ष है जहां इन बड़ी परियोजनायोंए के लिए होने वाले ब्लास्टिंग, सुरंग निर्माण और मलवा डंपिंग के कारण भूस्खलन और बाढ़ से भयानक तबाही हुई है। 

उत्तराखंड त्रासदी के लिए बड़े जलविद्युत परियोजनाओं को ही जिम्मेवार 

वर्ष 2013 से उत्तराखंड त्रासदी के कारणों का पता लगाने के लिए गठित डाक्टर रवि चोपड़ा समिति ने उत्तराखंड त्रासदी के लिए बड़े जलविद्युत परियोजनाओं को ही जिम्मेवार बताया। वहीं वर्ष 2009 में हिमाचल प्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय के स्वतरू संज्ञान पर गठित अभय शुक्ला समिति ने भी इन्हीं परियोजनाओं को पर्यावरण विनाश का मुख्य कारण बताते हुए ऊंचे हिमालय क्षेत्रों में 7000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इन परियोजनाओं पर पूर्णतः पाबंदी लगाने की सिफारिश की थीं तथा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने भी इन परियोजनाओं को उच्च हिमालयी क्षेत्रों के अनुचित बताया हैए लाहुल घाटी की कुल औसत ऊंचाई समुद्र तट से लगभग 9000 फीट है। जोकि अभय शुक्ला समिति की सिफारिश के मुताबिक 2000, फीट ज्यादा है तथा भूकंप की दृष्टि से भी हमारा जिला अति भूकंपीय जोखिम क्षेत्र 4 तथा 5 में आता है।

प्रकृति के साथ खिलवाड़ संपूर्ण लाहुल घाटी को एकजुट

पिछले कुछ वर्षों में मौसम में हुए आमूलचूल परिवर्तन से जिले के मयाड़, जहालमा, शांशा, तोजिंग, तथा शकस जैसे ज्यादातर नालों में बढ़वारी ने कहर ढाया है। ऐसे में इस बात का आंकलन स्वतः ही लगाया जा सकता है। इस विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति के साथ खिलवाड़ संपूर्ण लाहुल घाटी को एकजुटता के साथ इन परियोजनाओं के विरुद्ध लामबंद होने की सख्त आवश्यकता है। 

महत्वपूर्व जन आंदोलन को कामयाब बनाने के लिए आएंगे लाहुल वासी 

इसी के मद्देनजर रखते हुए पिछले दिनों उदयपुर में मृकुला माता मंदिर के प्रांगण में एक विशाल विरोध रैली का आयोजन समस्त पंचायत प्रतिनिधियों के नेतृत्व में किया। पंचायत प्रतिनिधियों ने सभी महिला मंडलों युवक मंडलो, जन संगठनों तथा समस्त लाहुल स्पीति के बुद्धिजीवी प्रबुद्धजनों से आवाहन किया, कि इस विरोध रैली में अपनी उपस्थिति दर्ज कर अपने व सम्पूर्ण लाहुल घाटी की आवाज को बुलन्द करें। इस महत्वपूर्व जन आंदोलन को कामयाब बनाने के लिए; सेव लाहुल समितिद्ध के अध्यक्ष सेवानिवृत मुख्य अरण्यपाल बीएस राणा ने सभी पर्यावरण प्रेमियों से भी आवाहन किया है कि लाहुल स्पीति घाटी की प्रकृति और पर्यावरण के खिलवाड़ से बचने के लिए इस रैली में ज्यादा से ज्यादा लोग अपनी उपस्थिति दर्ज करे। इस प्रैस वार्ता में जिला परिषद् सदस्य महिंद्र सिंह BDC, मेंबर शीला देवी, रीता ठाकुर, दिनेश कुमार हीरचंद, गोपाल गौड, निर्मला विकास जसपा, खुशाल चंद, सुरेन्द्र ठाकुर प्रेमदासी, रविन्द्र, आदि गणमान्य लोग मौजूद रहे।... बाली चौकी से डोला सिंह महंत की रिपोर्ट।
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