Himachal Heavy Rain Alert: बाढ़, लैंडस्लाइड...मॉनसून फिर दिखाएगा तेवर, हिमाचल में 'हेवी टू वेरी हेवी' बारिश की चेतावनी
- क्या पर्यावरण की कीमत पर हो रहा विकास?
- वन विभाग जिम्मेदारी से नहीं कर रहा काम
- हजारों टन लकड़ी बहकर आई, जिम्मेदार कौन?
- प्रशासनिक चूक, अवैध कटान, और पर्यावरणीय अनदेखी
- वन विभाग जिम्मेदारी से नहीं कर रहा काम
- हजारों टन लकड़ी बहकर आई, जिम्मेदार कौन?
- प्रशासनिक चूक, अवैध कटान, और पर्यावरणीय अनदेखी
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Mandi.Shimla | 28 जून 2025 | संवाददाता: अंसारी
हिमाचल प्रदेश में मानसून अब पूरी तरह सक्रिय हो चुका है और इसकी मार आम जनजीवन पर पड़ने लगी है। भारी बारिश और बाढ़ ने प्रदेश के कई इलाकों को अपनी चपेट में ले लिया है। मौसम विभाग ने राज्य में 27 जून से 2 जुलाई तक के लिए येलो और ऑरेंज अलर्ट जारी किया है।
विशेषकर 29 जून को ऑरेंज अलर्ट की चेतावनी गंभीर स्थिति की ओर इशारा कर रही है। हिमाचल के चम्बा, हमीरपुर, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, मंडी, शिमला और सोलन जिलों में प्रशासन ने बाढ़ और भूस्खलन की संभावनाओं को देखते हुए लोगों से सतर्क रहने की अपील की है।
हजारों टन लकड़ी बहकर आई, जिम्मेदार कौन?
भारी वर्षा के चलते कई इलाकों में नदियों और नालों का जलस्तर इतना बढ़ गया कि हजारों टन लकड़ी बहकर निचले इलाकों में पहुंच गई। यह दृश्य केवल चौंकाने वाला ही नहीं, बल्कि कई सवाल भी खड़े करता है।
वर्ष 2023 में थुनाग में आई तबाही के वक्त भी ऐसी ही घटनाएं देखने को मिली थीं, लेकिन सरकार ने अब तक कोई ठोस नीति नहीं बनाई। इस साल फिर वही मंजर — नाले उफान पर और लकड़ियों का बहना — यह बता रहा है कि कुछ तो गंभीर गड़बड़ है।
वन विभाग जिम्मेदारी से नहीं कर रहा काम – कुलदीप राठौर
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और विधायक कुलदीप सिंह राठौर ने शुक्रवार को शिमला में आयोजित पत्रकार वार्ता में कहा कि:
“हजारों टन लकड़ी बहकर आना कोई सामान्य बात नहीं। यह अवैध कटान और अवैध खनन की पोल खोलता है।
सरकार को इस मामले में उच्च स्तरीय जांच बिठानी चाहिए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि वन विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रहा है। जहां एक ओर सरकारी प्रोजेक्ट्स के नाम पर हजारों पेड़ काटे जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नदी-नालों के किनारे अवैध निर्माण भी तेजी से बढ़ रहा है।
क्या पर्यावरण की कीमत पर हो रहा विकास?
प्राकृतिक आपदाओं की पुनरावृत्ति से यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या विकास योजनाएं पर्यावरण संतुलन की कीमत पर चल रही हैं?
नदियों की धाराएं बदल रही हैं, जंगल उजड़ रहे हैं, और पहाड़ों में असंतुलन दिखाई दे रहा है।
अब समय आ गया है कि हिमाचल सरकार को एक ऐसी नीति बनानी होगी जो विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए।
प्रशासनिक चूक, अवैध कटान, और पर्यावरणीय अनदेखी
हिमाचल में सक्रिय मानसून ने एक बार फिर प्रकृति की ताकत का एहसास करा दिया है। लेकिन साथ ही, यह प्रशासनिक चूक, अवैध कटान, और पर्यावरणीय अनदेखी पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
यदि सरकार और विभाग समय रहते नहीं जागे, तो अगली तबाही और भी बड़ी हो सकती है।
बादल फटने और बाढ़ से हालात चिंताजनक
बीते 24 घंटों में कुल्लू और कांगड़ा जिलों में बादल फटने की घटनाएं हुई हैं, जिनसे कई इलाके बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। राहत व बचाव कार्य युद्धस्तर पर जारी हैं, लेकिन अब तक 6 लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग लापता हैं।
मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि अगले कुछ दिनों में न केवल भारी बारिश होगी, बल्कि नदियों-नालों में उफान, भूस्खलन, और फ्लैश फ्लड की आशंका भी बनी हुई है।
पालमपुर और बंजार में सबसे अधिक वर्षा
गुरुवार को राज्य के कई हिस्सों में तेज बारिश दर्ज की गई, जिनमें:
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पालमपुर में 8 सेंटीमीटर
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बंजार (कुल्लू) में 7 सेंटीमीटर
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जाटों बैराज में 5
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नारकंडा व धर्मशाला में 4-4 सेंटीमीटर
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चंबा, ऊना, सलूणी, सराहन, रामपुर बुशहर आदि में 3 सेंटीमीटर तक वर्षा दर्ज की गई।
शिमला, ऊना और हमीरपुर सहित कई स्थानों पर तापमान में गिरावट दर्ज की गई है।
प्रशासन और मुख्यमंत्री की अपील – नदी-नालों से दूर रहें
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आम नागरिकों और पर्यटकों से नदी-नालों के समीप न जाने की सख्त हिदायत दी है। उन्होंने विशेष तौर पर कहा कि:
“जिन क्षेत्रों में पहले भूस्खलन हो चुका है, वहां अतिरिक्त सतर्कता बरती जाए। पर्यटकों से अपील है कि वे प्रशासन के निर्देशों का पालन करें और जोखिम न उठाएं।”
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