I.T.I. पास युवा 400 रु. दिहाडी पर मजबूर! मंडी में रोजगार की हकीकत से उठा परदा
HimachalToday.in
मंडी, हिमाचल प्रदेश।
प्रदेश सरकार भले ही तकनीकी शिक्षा के आधुनिकीकरण और युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के दावे कर रही हो, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है। मंडी ज़िले के आईटीआई से प्रशिक्षित युवाओं को महज़ 400 रुपये से 1000 रुपये दिहाडी के वेतन पर दूसरे राज्यों में रोजगार करने को मजबूर होना पड़ रहा है। सवाल उठता है – क्या यही है तकनीकी शिक्षा से आत्मनिर्भरता का वादा?
अढ़ाई सालों में 4414 से अधिक युवाओं को नौकरियां
प्रदेश सरकार के अनुसार, बीते अढ़ाई सालों में 4414 से अधिक युवाओं को कैंपस प्लेसमेंट के जरिए नौकरियां मिली हैं, लेकिन इनमें से ज़्यादातर को कम वेतन पर बाहरी राज्यों में भेजा गया है। जबकि शोर यह मचाया गया कि 12,000 से ₹33,500 तक सैलरी मिल रही है, मगर सच्चाई यह है कि कई युवाओं को ₹10000 की मासिक रकम से शुरुआत करनी पड़ रही है।
विवाद का कारण:
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क्या ITI संस्थानों में सिर्फ कंपनियों को सस्ते श्रमिक देने की ट्रेनिंग दी जा रही है?
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कैंपस प्लेसमेंट का मतलब क्या केवल "सस्ते में युवा श्रमिकों का एक्सपोर्ट" बन गया है?
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जो नौकरियां दी जा रही हैं, क्या उनका गुणवत्ता मूल्यांकन किया गया है?
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प्रदेश में खुद के उद्योग क्यों नहीं खड़े किए जा रहे, ताकि युवाओं को घर-द्वार पर रोजगार मिले?
आंकड़ों का चौंकाने वाला सच:
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ITI मंडी से वर्ष 2023 में 876, 2024 में 1477, और 2025 में 1585 युवा प्लेस हुए।
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लेकिन इनमें बड़ी संख्या में ऐसे युवा हैं, जिनकी सैलरी शुरू में ₹10000 से कम थी।
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जोगिंद्रनगर ITI में 450 और PWD सुंदरनगर से 16 प्रशिक्षु प्लेस हुए, पर शर्तें सवालों में।
सरकारी पक्ष:
तकनीकी शिक्षा निदेशक अक्षय सूद का कहना है कि मंडी ज़िले में 25 सरकारी ITI संस्थान चल रहे हैं, और प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा युवाओं को रोजगार मिले। उपायुक्त अपूर्व देवगन ने भी इस ‘सफलता’ की सराहना की।
मुख्य सवाल:
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क्या ये "प्लेसमेंट्स" रोजगार हैं या सिर्फ आंकड़ों की बाज़ीगरी?
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हिमाचल के युवाओं को बाहर भेजना समाधान है या सरकार की विफलता का प्रमाण?
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क्या सरकार प्लेसमेंट के साथ-साथ न्यूनतम वेतन गारंटी भी देगी?
जमीनी हकीकत को लेकर खड़ा होता विवाद:
सरकार जहां इसे सफलता बता रही है, वहीं सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि ये "सस्ते दाम में स्किल्ड मजदूरों का एक्सपोर्ट है"।
यदि यह विवाद अब तक शांत है तो सिर्फ इसलिए क्योंकि युवाओं के पास विकल्प नहीं है। सवाल उठता है – क्या प्रदेश की तकनीकी शिक्षा प्रणाली युवाओं को सपने दिखा रही है या सस्ती मजदूरी के लिए तैयार कर रही है?
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