सुरक्षित हिमाचल की माँग तेज: मंडी में दो दिवसीय बैठक में जन संगठनों की बड़ी आवाज़
मंडी में विभिन्न जन संगठनों ने दो दिवसीय बैठक कर सुरक्षित हिमाचल की मांग उठाई। आपदाओं, विकास मॉडल और पर्यावरण संरक्षण पर गहरी चिंता व्यक्त की। सुरक्षित हिमाचल की मांग तेज: मंडी में जन संगठनों की बड़ी बैठक।
Himachal Today Tv.
मंडी/हिमाचल प्रदेश।
हिमाचल और पूरा हिमालय इस समय भारी पर्यावरणीय संकट और लगातार बढ़ती आपदाओं के दौर से गुजर रहा है। इन्हीं चुनौतियों को देखते हुए प्रदेश के विभिन्न जन संगठनों ने 15–16 नवंबर 2025 को मंडी के साक्षरता भवन में दो दिवसीय बैठक आयोजित की। बैठक का मकसद था—आपदाओं, जलवायु परिवर्तन और अव्यवस्थित विकास नीतियों के बीच सुरक्षित हिमाचल के लिए एक मजबूत और सामूहिक रणनीति तैयार करना।
बैठक में कई संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपनी चिंताएँ खुले तौर पर रखीं।
जागोरी ग्रामीण की चंद्रकांता ने कहा कि पिछले वर्षों में बादल फटना, भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाएँ केवल प्राकृतिक आपदा नहीं हैं, बल्कि यह सरकारों के असंतुलित और तेज विकास मॉडल का परिणाम हैं।
हिमालय नीति अभियान के गुमान सिंह ने चेताया कि बिलासपुर-लेह रेल लाइन और लेह ट्रांसमिशन लाइन जैसी विशाल परियोजनाएँ ब्यास घाटी और पूरे हिमाचल के पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन सकती हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसे हिंसक विकास मॉडल पर रोक लगानी चाहिए और पहाड़–पहाड़ी लोगों की सुरक्षा को पहली प्राथमिकता देनी चाहिए।
हिमधरा पर्यावरण समूह के प्रकाश भंडारी ने कहा कि अगर हमें अपने घर, खेत और संपत्ति को बचाना है, तो जंगलों, घास के मैदानों और नदी-नालों जैसे सामुदायिक क्षेत्रों की रक्षा करनी ही होगी। आपदाएँ वहाँ से शुरू होती हैं जहाँ सामुदायिक जमीनों से छेड़छाड़ की जाती है।
मंडी के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्याम सिंह ने कहा कि किसी भी परियोजना को शुरू करने से पहले स्थानीय लोगों और पंचायतों की सहमति लेना बेहद जरूरी है। जनता को दरकिनार कर शुरू किए गए विकास कार्य अक्सर खतरनाक साबित होते हैं।
लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान के अशोक सोमल ने जानकारी दी कि हिमाचल की लगभग 67% भूमि वन क्षेत्र में आती है। इसी कारण 2023 से अब तक हजारों आपदा पीड़ित परिवार स्थायी पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब तक केंद्रीय वन कानूनों में बदलाव नहीं होगा, व्यापक पुनर्वास संभव नहीं है।
करसोग के पद्मश्री नेकराम शर्मा ने कहा कि पहाड़ी अर्थव्यवस्था—कृषि और बागवानी—दोनों को जलवायु परिवर्तन के अनुसार ढालने की जरूरत है। स्थानीय समुदायों की भागीदारी के बिना भविष्य सुरक्षित नहीं हो सकता।
यह दो दिवसीय कार्यक्रम प्रदेश के कई जन संगठनों के संयुक्त प्रयास से आयोजित किया गया, जिनमें शामिल हैं—एकल नारी शक्ति संगठन, भूमि अधिग्रहण प्रभावित मंच, हिमालय नीति अभियान, हिमलोक जागृति मंच, हिमाचल ज्ञान-विज्ञान समिति, हिमधरा पर्यावरण समूह, जीभी वैली टूरिज्म डेवलपमेंट एसोसिएशन, लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान, मंडी साक्षरता समिति, पीपल फॉर हिमालय अभियान, पर्वतीय महिला अधिकार मंच, सामाजिक-आर्थिक समानता अभियान, सेव लाहौल-स्पीति, और टावर लाइन प्रभावित मंच।
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