Shimla Masjid: शिमला की पांच मंजिला मस्जिद पर अदालत का फैसला: वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज
News 18 चैनल के अनुसार शिमला की संजौली मस्जिद मामले में जिला अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने वक्फ बोर्ड और मस्जिद कमेटी की याचिका खारिज करते हुए नगर निगम के अवैध निर्माण हटाने के आदेश को बरकरार रखा है। मामला अब प्रदेश सरकार और मुस्लिम संगठनों के रुख पर टिका है।
हिमाचल प्रदेश -शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्थित संजौली मस्जिद मामले में जिला अदालत का फैसला आने के बाद प्रदेशभर में चर्चा तेज हो गई है। News 18 चैनल के अनुसार अदालत ने वक्फ बोर्ड और मस्जिद कमेटी द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज करते हुए नगर निगम शिमला के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें मस्जिद के निर्माण को अवैध बताते हुए उसे हटाने का निर्देश दिया गया था।
यह फैसला उस समय आया जब प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू बिहार दौरे पर थे, जहाँ वे हिमाचल सरकार की विकास योजनाओं को INDIA गठबंधन के मंच से साझा कर रहे थे। वहीं, हिमाचल की राजधानी में यह फैसला प्रदेश की राजनीतिक और सामाजिक परतों में हलचल पैदा कर गया।
Shimla Masjid: मामला क्या है
संजौली क्षेत्र में स्थित यह मस्जिद कई वर्षों से विवाद का विषय रही है। नगर निगम शिमला ने पूर्व में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मस्जिद की ऊपरी मंज़िलें बिना आवश्यक अनुमति के बनाई गई हैं। निगम ने इन्हें अनधिकृत निर्माण बताते हुए ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था।
इसी आदेश के खिलाफ वक्फ बोर्ड और मस्जिद कमेटी ने जिला अदालत में याचिका दायर की थी। दोनों पक्षों का तर्क था कि निर्माण से पहले संबंधित विभागों से अनुमति ली गई थी और यह स्थान धार्मिक उपयोग में आ रहा है, इसलिए इसे गिराया जाना उचित नहीं है।
दूसरी ओर, नगर निगम का कहना था कि निर्माण में भवन नियमों और शहरी नियोजन अधिनियम का उल्लंघन हुआ है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
Shimla Masjid: अदालत का निर्णय
30 अक्टूबर को जिला अदालत ने मामले की सुनवाई पूरी करते हुए मस्जिद कमेटी और वक्फ बोर्ड की याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने नगर निगम के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि निर्माण के पर्याप्त कानूनी दस्तावेज़ पेश नहीं किए गए।
इस फैसले के बाद अदालत परिसर के बाहर देव भूमि संघर्ष समिति के सदस्यों ने निर्णय का स्वागत किया।
Shimla Masjid: वक्फ बोर्ड की प्रतिक्रिया
वक्फ बोर्ड से जुड़े सूत्रों के अनुसार, बोर्ड इस फैसले की प्रति का अध्ययन कर रहा है और आगे की कानूनी प्रक्रिया पर विचार किया जा रहा है। संभव है कि बोर्ड उच्च न्यायालय में अपील दायर करे।
एक सदस्य ने कहा कि “यह धार्मिक स्थल कई वर्षों से स्थानीय मुस्लिम समुदाय के उपयोग में है। हम चाहते हैं कि न्याय के साथ धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक संदर्भों का भी ध्यान रखा जाए।”
Shimla Masjid: प्रशासन का रुख
शिमला नगर निगम प्रशासन का कहना है कि अदालत का आदेश स्पष्ट है और अब कानूनी प्रक्रिया के अनुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी। निगम ने कहा कि “हम न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हैं। किसी भी धार्मिक स्थल के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा, लेकिन नियमों के अनुरूप कार्रवाई की जाएगी।
Shimla Masjid: सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया
प्रदेश में विभिन्न वर्गों से इस निर्णय पर प्रतिक्रिया आने लगी है। कुछ लोग इसे "कानूनी प्रक्रिया की जीत" बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे धार्मिक भावनाओं से जुड़ा संवेदनशील मुद्दा मान रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला ऐसे समय में आया है जब प्रदेश सरकार पहले से ही आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर चुनौतियों का सामना कर रही है। इसलिए सरकार को इस मामले में बेहद संतुलित रुख अपनाने की आवश्यकता है।
कांग्रेस सरकार पर विपक्ष द्वारा यह आरोप लगाया गया है कि उसने अब तक वक्फ बोर्ड और अल्पसंख्यक संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया। वहीं, सरकार के सूत्रों का कहना है कि “राज्य में सभी समुदायों के अधिकारों की रक्षा की जाएगी और कोई भेदभाव नहीं होगा।
Shimla Masjid: समुदाय की स्थिति और भावनाएँ
स्थानीय मुस्लिम समुदाय के कुछ प्रतिनिधियों ने कहा कि यह केवल एक भवन का मुद्दा नहीं है, बल्कि वर्षों से चली आ रही पहचान और विरासत का सवाल भी है। वहीं, कुछ नागरिक संगठनों का मानना है कि न्यायालय के आदेशों का सम्मान किया जाना चाहिए, ताकि राज्य में कानून का शासन बना रहे।
Shimla Masjid: आगे की राह
अब मामला वक्फ बोर्ड और मस्जिद कमेटी के आगे के निर्णय पर निर्भर करता है। यदि वे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं, तो मस्जिद की स्थिति पर अंतिम फैसला आने में समय लग सकता है।
राज्य सरकार भी इस पूरे मामले पर नजर रखे हुए है। सूत्रों के अनुसार, प्रशासन को निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी कार्रवाई से पहले स्थानीय स्तर पर शांति और सामंजस्य बना रहे।
जहाँ एक ओर अदालत का निर्णय कानून की प्रक्रिया को मजबूत करता है, वहीं दूसरी ओर यह भी चुनौती देता है कि धार्मिक सौहार्द और संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखते हुए प्रशासन कैसे आगे बढ़ेगा।
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